Golu Devta Story In Hindi: उत्तराखंड की देवभूमि में गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है। कुमाऊं क्षेत्र में उन्हें गोलू राजा, बाला गोरिया, वन देवता और गौर भैरव जैसे नामों से भी जाना जाता है। वे अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध हैं। भक्त अपनी समस्याओं को पत्र के माध्यम से उनके मंदिरों में अर्पित करते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति पर घंटियां चढ़ाते हैं। उनके प्रमुख मंदिर चंपावत, चितई (अल्मोड़ा) और घोड़ाखाल (नैनीताल) में स्थित हैं।

गोलू देवता का जन्म चंपावत के चंद्रवंशी राजवंश में हुआ। इस राजवंश में झालराई, हालराई, तिलराय, गुर्राई और कालराई जैसे प्रमुख राजा हुए। राजा हालराई के पिता का नाम झालराई था। राजा हालराई अपने न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ स्वभाव के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने रानी कालिका से विवाह किया था, जिनसे उन्हें पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। राजा की सात अन्य रानियों को रानी कालिका से अत्यधिक ईर्ष्या थी क्योंकि वे निःसंतान थीं।
जब रानी कालिका गर्भवती हुईं, तो सातों रानियों ने षड्यंत्र रचकर बालक को जन्म लेते ही समाप्त करने की योजना बनाई। प्रसव के समय उन्होंने रानी कालिका की आंखों पर पट्टी बांध दी। जैसे ही बालक का जन्म हुआ, रानियों ने उसे चुपचाप गाय-बकरियों के बाड़े में फेंक दिया ताकि वह मर जाए। लेकिन बालक को कोई हानि नहीं हुई।
इस असफल प्रयास के बाद रानियों ने एक और कुटिल चाल चली। उन्होंने बालक को पिंजरे में बंद कर नदी में बहा दिया। इसके बाद उन्होंने रानी कालिका से झूठ बोला कि उनके गर्भ से कोई संतान नहीं हुई है, बल्कि एक पत्थर (सिलबट्टा) पैदा हुआ है। यह सुनकर रानी कालिका को गहरा आघात लगा। उन्होंने इसे अपना दुर्भाग्य मान लिया और रो-रोकर भगवान से प्रार्थना करने लगीं कि या तो उन्हें मृत्यु प्रदान कर दी जाए या इस पीड़ा से मुक्त किया जाए।
उधर, नदी में मछलियां पकड़ रहे एक धीवर (मछुआरा) को पिंजरे में बालक फंसा मिला। धीवर की अपनी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उसने उस बालक को अपनी संतान के रूप में अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया। बालक धीरे-धीरे बड़ा हुआ और अपनी असाधारण शक्ति और साहस के लिए प्रसिद्ध होने लगा।
कुछ वर्षों बाद, गोलू देवता अपनी मां के सपनों में दिखाई देने लगे। एक दिन, वे नदी किनारे अपने लकड़ी के घोड़े (काध का होड़ा) पर सवार होकर पानी पिला रहे थे। सात रानियों ने उन्हें देखकर मजाक उड़ाया और कहा, “क्या लकड़ी का घोड़ा भी कभी पानी पीता है?” इस पर गोलू देवता ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “यदि एक इंसान पत्थर को जन्म दे सकता है, तो लकड़ी का घोड़ा भी पानी पी सकता है।”
इस घटना के बाद गोलू देवता ने अपनी मां से अपनी पहचान उजागर की और पूरी सच्चाई बताई। राजा हालराई को जब षड्यंत्र की जानकारी मिली, तो उन्होंने सातों रानियों को उनके अपराधों के लिए कड़ी सजा दी।
गोलू देवता ने अपने पराक्रम और न्यायप्रियता से पूरे कुमाऊं क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की। वे सफेद घोड़े पर सवार होकर लोगों को न्याय प्रदान करते थे। कहा जाता है कि उनके दरबार में कोई भी फरियादी खाली हाथ नहीं लौटता था। जो भी व्यक्ति अपनी समस्या लेकर उनके पास जाता, उसे अवश्य न्याय मिलता था। इसी कारण लोग उन्हें न्यायकारी देवता के रूप में पूजने लगे।
उनके मंदिरों में भक्त अपनी समस्याओं को पत्र में लिखकर अर्पित करते हैं। जब उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, तो वे मंदिर में घंटियां चढ़ाते हैं। चितई गोलू मंदिर में आज भी हजारों घंटियां टंगी हुई हैं, जो भक्तों की पूर्ण हुई मनोकामनाओं का प्रतीक हैं।
गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उनकी न्यायप्रियता और चमत्कारिक घटनाओं की कहानियां लोक परंपराओं में जीवित हैं। उनके नाम पर नंदा देवी राजजात यात्रा, उत्तरायणी मेला और बिस्सू मेला जैसे पर्वों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इस प्रकार गोलू देवता आज भी उत्तराखंड में आस्था और न्याय के प्रतीक बने हुए हैं।