नैमिषारण्य में ऋषियों के बीच बैठे सूत जी ने अपनी मधुर वाणी में कहा, हे महर्षियों! आपने पहले शिवपुराण की वह कथा सुनी, जिसमें दुष्ट ब्राह्मण देवराज ने शिवपुराण का श्रवण कर मोक्ष प्राप्त किया। आज मैं आपको एक और कथा सुनाने जा रहा हूँ, जो यह प्रमाणित करती है कि भगवान शिव की कृपा से कोई भी प्राणी, चाहे वह कितना भी पापमय क्यों न हो, मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। यह कथा है – चंचला के उद्धार की।
चंचला की कथा का आरंभ
समुद्र के किनारे एक राज्य था, जहाँ का एक नगर ‘असाल’ पापियों का गढ़ बन चुका था। उस नगर के लोग न तो धर्म में आस्था रखते थे, न वे देवताओं की पूजा करते थे। वे सभी हिंसक हथियारों से लैस, अधर्म के मार्ग पर चलने वाले थे।
इसी नगर में एक ब्राह्मण बिंदु रहता था। वह अधर्मी, दुष्ट और पापमय जीवन जीता था। उसकी पत्नी चंचला अत्यंत सुंदर और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। चंचला धर्म-कर्म में लीन रहती थी, परंतु उसका पति बिंदु वेश्यागमन और पापमय कार्यों में लिप्त था।
समय बीतता गया। पहले तो चंचला ने अपने पति की बुराइयों को सहन किया और धर्म से विचलित नहीं हुई। लेकिन धीरे-धीरे बिंदु के बुरे आचरण का प्रभाव चंचला पर भी पड़ने लगा, और वह भी अधर्म के मार्ग पर चल पड़ी।
संगति का प्रभाव इतना गहरा होता है कि जैसे दूध में नींबू की बूंद गिरने से वह फट जाता है, वैसे ही चंचला का चरित्र भी पतित हो गया। उसने अपनी लज्जा और धर्म को त्यागकर अन्य पुरुषों से संबंध स्थापित करने शुरू कर दिए।
कुछ समय बाद बिंदु की मृत्यु हो गई, और उसके पापों के कारण उसे नरक में अत्यंत दुख भोगने पड़े।
उसके पापों के कारण, अगले जन्म में बिंदु को पिशाच (राक्षसी आत्मा) के रूप में जन्म मिला।
बिंदु की मृत्यु के बाद चंचला अपने पुत्रों के साथ अकेली रह गई। एक दिन, किसी शुभ अवसर पर, वह अपने भाइयों के साथ तीर्थयात्रा के लिए निकली। यात्रा के दौरान, उसने शिव मंदिर के पास एक कथा सुनी।
वहाँ एक ब्राह्मण शिवपुराण की कथा सुना रहा था। कथा में बताया गया कि पति को धोखा देने वाली स्त्रियों को मृत्यु के बाद कठोर दंड भुगतना पड़ता है। लोहे की गरम छड़ों से उनका शरीर जलाया जाता है, और उनकी आत्मा को असहनीय पीड़ा सहनी पड़ती है।
कथा में विस्तार से बताया गया कि जिन स्त्रियों ने विवाह के पश्चात अन्य पुरुषों से संबंध बनाए, उन्हें यमलोक में भयंकर यंत्रणाएँ सहनी पड़ती हैं।
चंचला के रोंगटे खड़े हो गए। उसकी आँखों के सामने यमलोक की भयंकर छवियाँ उभरने लगीं। उसका हृदय भय से कांप उठा।
वह डर से व्याकुल हो गई, क्योंकि उसे एहसास हुआ कि उसके द्वारा किए गए पाप उसे उन्हीं भयानक यंत्रणाओं की ओर ले जा रहे हैं।
कथा समाप्त होने के बाद चंचला ने उस ब्राह्मण कथा वाचक के चरणों में गिरकर कहा, “हे ब्राह्मण देव! मैंने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं। मुझे इस अधर्म से मुक्त करने का कोई उपाय बताइए।”
ब्राह्मण ने करुणा भरे शब्दों में कहा, “हे माता! शिवपुराण का श्रवण और भगवान शिव की भक्ति से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह शिवपुराण अमृत के समान है, जो आत्मा को शुद्ध करता है।”
चंचला ने ब्राह्मण से प्रार्थना की कि वह उसे अपने पास रख लें। उसने अपनी शरण ब्राह्मण के चरणों में ले ली और वहीं रहने लगी।
प्रत्येक दिन चंचला श्रद्धा और भक्ति के साथ ब्राह्मण से शिवपुराण की कथा सुनने लगी।
हर कथा के साथ उसका हृदय और आत्मा शुद्ध होती चली गई। शिवपुराण की अमृतमयी कथाओं ने उसके हृदय में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का संचार किया।
कुछ समय बाद, चंचला का मन शिवभक्ति में लीन हो गया। उसने अपना शेष जीवन भगवान शिव की भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के मार्ग पर व्यतीत किया।
जब चंचला का अंतिम समय आया, तब उसने बिना किसी कष्ट के शरीर त्याग दिया। उसी क्षण, भगवान शिव का दिव्य विमान वहाँ प्रकट हुआ।
शिवगणों ने चंचला की आत्मा को सम्मानपूर्वक शिवलोक ले जाकर भगवान शिव के चरणों में प्रस्तुत किया।
भगवान शिव और माता पार्वती ने चंचला को अपनी कृपा से आशीर्वाद दिया। माता पार्वती ने प्रेमपूर्वक चंचला को अपनी सखी (मित्र) बना लिया।
शिक्षा: शिवपुराण की कथा सुनने से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
“हे भक्तों! शिवपुराण केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि मोक्ष का दिव्य द्वार है। इसका श्रवण, पाठ और पालन करने से व्यक्ति जीवन के सभी दुखों और बंधनों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।”
“हर हर महादेव!” 🚩✨
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शिवपुराण की अगली कथा में फिर मिलेंगे।