कैलाश पर्वत पर एक सुनहरी दोपहर थी। बर्फ की सफेद चादर पर सूर्य की किरणें चमक रही थीं। भगवान शिव ध्यानमग्न थे, और माता पार्वती उनके पास बैठी मुस्कुरा रही थीं।
“स्वामी, आज का दिन कितना सुंदर है। हम कुछ समय एक-दूसरे के साथ खेलकर बिताएं?” – माता पार्वती ने भोलेनाथ से कहा।
भगवान शिव ने अपनी आँखें खोलीं और मुस्कुराते हुए बोले, “देवी, क्यों न हम एक नया खेल खेलें? मैंने एक खेल तैयार किया है – चौसर।”
माता पार्वती ने तुरंत सहमति दे दी, और खेल शुरू हुआ। खेल में भगवान शिव लगातार जीतते जा रहे थे।
“स्वामी, यह खेल आपने बनाया है, इसलिए आप ही जीत रहे हैं। खेल में कुछ स्पष्ट नियम भी होने चाहिए।” – माता पार्वती ने कहा।
भगवान शिव ने गंभीर होकर कहा, “ठीक है देवी, अब मैं इस खेल के नए नियम बनाता हूं।”
नियम बने:
- जो हारेगा, उसे अपनी हर वस्तु दांव पर लगानी होगी।
- हारने वाले को अपनी सभी वस्तुएं त्यागनी होंगी, यहां तक कि अपना स्थान भी छोड़ना होगा।
खेल नए नियमों के साथ फिर से शुरू हुआ। इस बार माता पार्वती बार-बार जीतने लगीं। कुछ ही देर में भगवान शिव ने अपना सब कुछ हार दिया।
“स्वामी, यह तो केवल एक खेल था। आप इसे इतनी गंभीरता से क्यों ले रहे हैं?” – माता पार्वती ने चिंता जताई।
भगवान शिव ने शांत स्वर में कहा, “देवी, यह केवल खेल नहीं है। नियम आपने बनाए थे, और नियमों का पालन करना मेरा धर्म है। मैं अब कैलाश पर्वत छोड़कर जा रहा हूं।”
यह कहकर भगवान शिव कैलाश पर्वत छोड़कर गंगा के तट पर चले गए।
भगवान शिव के जाने के बाद, माता पार्वती अत्यंत दुखी हो गईं। जब कार्तिकेय लौटे और उन्हें घटना का पता चला, तो वे भगवान शिव को मनाने के लिए निकल पड़े।
इसी बीच गणेश जी ने अपनी माता की पीड़ा देखी और शिव जी को मनाने के लिए हरिद्वार पहुंचे।
गणेश जी ने कहा, “पिताश्री, माता आपके बिना बहुत दुखी हैं। कृपया उनके पास वापस चलें।”
भगवान शिव ने कहा, “यदि माता पार्वती मेरे साथ दोबारा चौसर का खेल खेलें और जीतें, तो मैं कैलाश लौट सकता हूं।”
गणेश जी ने यह प्रस्ताव माता पार्वती को दिया, जिसे माता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
खेल फिर से शुरू हुआ। लेकिन इस बार भगवान विष्णु ने पासे का रूप धारण कर लिया। माता पार्वती को यह बात ज्ञात नहीं थी।
खेल में भगवान शिव हर बार जीतने लगे। गणेश जी ने यह चालाकी समझ ली और माता पार्वती को इसकी जानकारी दी।
माता पार्वती क्रोधित होकर बोलीं, “स्वामी, यह तो छल है! खेल में छल करना उचित नहीं है।”
भगवान विष्णु अपने असली रूप में प्रकट हुए और बोले, “देवी, यह केवल एक मजाक था। मुझे नहीं पता था कि यह इतना गंभीर हो जाएगा।”
माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने भगवान शिव से कहा, “स्वामी, अब खेल समाप्त हुआ। हमें वापस कैलाश लौटना चाहिए।”
भगवान शिव मुस्कुराए और बोले, “ठीक है देवी, मैं आपके साथ वापस कैलाश लौटता हूं।”
भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश लौट आए। दोनों के बीच का यह खेल केवल एक चौसर का खेल नहीं था, बल्कि विश्वास, प्रेम, और आपसी समझ का प्रतीक था।
शिक्षा: प्रेम केवल जीतने का खेल नहीं, बल्कि साथ निभाने का संकल्प है।