गणेश जी की आराधना उनके भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाती है। हिंदू परंपरा में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और शुभ कार्यों के आरंभकर्ता के रूप में पूजा जाता है। उनकी स्तुतियों और आरतियों का गान हर पूजा को पूर्णता प्रदान करता है।
“श्री गनपति भज प्रगट पार्वती” एक दुर्लभ और प्राचीन आरती है, जो भगवान गणेश की महिमा को बड़े ही भावपूर्ण ढंग से वर्णित करती है। यह केवल एक आरती नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जिसमें भगवान गणेश के दिव्य स्वरूप, उनके गुणों और उनके आशीर्वाद को शब्दों के माध्यम से महसूस किया जा सकता है।
यह आरती उन भक्तों के लिए विशेष है, जो अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर करने और परम सुख व शांति की प्राप्ति के लिए भगवान गणेश का ध्यान करते हैं।
आइए, इस सुंदर स्तुति का आनंद लेते हैं और भगवान गणेश की कृपा को अपने जीवन में आमंत्रित करें।
श्री गणपति आरती का आध्यात्मिक महत्व
“श्री गनपति भज प्रगट पार्वती” स्तुति भगवान गणेश की महिमा को दर्शाने वाली एक पवित्र आरती है, जिसमें उनकी दिव्यता, गुण, और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।
यह स्तुति भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, बुद्धि प्रदाता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। इसे गाने या पढ़ने से मानसिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा, और सकारात्मकता का अनुभव होता है। भगवान गणेश को सभी शुभ कार्यों का आरंभकर्ता माना जाता है, और उनकी यह स्तुति हर तरह के विघ्नों को दूर कर जीवन को सफल और सुखमय बनाती है।
यह केवल भक्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि एक साधना है जो आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। यह स्तुति उन भक्तों के लिए विशेष है जो अपने जीवन में विघ्नों से मुक्ति पाकर समृद्धि और शांति की प्राप्ति चाहते हैं।
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🌸 श्री गणपति आरती 🌸
श्रीगनपति भज प्रकट पार्वती
श्री गनपति भज प्रगट पार्वती,
अंक बिराजत अविनासी।
ब्रह्मा-बिष्नु-सिवादि सकल सुर,
करत आरती उल्लासी।।
त्रिसूलधरको भाग्य मानिकैं,
सब जुरि आये कैलासी।
करत ध्यान, गंधर्व गान-रत,
पुष्पनकी हो वर्षा-सी।।
धनि भवानि व्रत साधि लह्यो जिन,
पुत्र परम गोलोकासी।
अचल अनादि अखंड परात्पर,
भक्तहेतु भव पर-कासी।।
विद्या-बुद्धि-निधान गुनाकर,
बिघ्नबिनासन दुखनासी।
तुष्टि पुष्टि सुभ लाभ लक्ष्मि संग,
रिद्धि सिद्धि-सी हैं दासी।।
सब कारज जग होत सिद्ध सुभ,
द्वादस नाम कहे छासी।
कामधेनु चिंतामनि सुरतरु,
चार पदारथ देतासी।।
गज-आनन सुभ सदन रदन इक,
सुंडि ढुंढि पुर पूजा-सी।
चार भुजा मोदक-करतल सजि,
अंकुस धारत फरसा-सी।।
ब्याल सूत्र त्रयनेत्र भाल ससि,
उन्दुरवाहन सुखरासी।
जिनके सुमिरन सेवन करते,
टूट जात जम की फांसी।।
कृष्णपाल धरि ध्यान निरन्तर,
मन लगाय जो कोइ गासी।
दूर करैं भवकी बाधा प्रभु,
मुक्ति जन्म निजपद पासी।।
श्री गणपति आरती पाठ की विधि
- स्थान और समय:
- यह स्तुति आप प्रातःकाल, संध्या समय, या किसी शुभ अवसर पर पढ़ सकते हैं।
- पूजा का स्थान स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
- सामग्री:
- भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर, दीपक, पुष्प, अक्षत (चावल), और मिठाई (जैसे मोदक) रखें।
- विधि:
- स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष दीप जलाएं।
- उनका ध्यान करें और “ॐ गणेशाय नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
- तत्पश्चात इस स्तुति का पाठ या गान करें।
- अंत में गणेश जी को मोदक या कोई अन्य मिठाई अर्पित करें और आरती करें।
- अनुष्ठान:
- इस स्तुति का पाठ 11, 21, या 108 बार जप के रूप में भी किया जा सकता है।
श्री गणेश चालीसा से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस स्तुति का पाठ किसके लिए लाभदायक है?
यह स्तुति हर भक्त के लिए लाभदायक है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो जीवन में विघ्न, बाधाओं, और मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। विद्यार्थी और व्यवसायी भी इसे पढ़ सकते हैं।
इस स्तुति को कब और कैसे पढ़ना चाहिए?
इसे प्रतिदिन प्रातः और संध्या समय, या विशेष अवसरों जैसे गणेश चतुर्थी, विवाह, या गृह प्रवेश पर पढ़ा जा सकता है। स्वच्छता और पवित्रता का ध्यान रखें।
क्या इस स्तुति को गाने से भी उतना ही लाभ होता है जितना पाठ करने से?
हाँ, इसे गाने या पाठ करने से समान लाभ प्राप्त होते हैं क्योंकि दोनों ही भक्तिभाव से जुड़े हैं।
क्या इसे बिना मंत्र दीक्षा के पढ़ सकते हैं?
हाँ, यह स्तुति हर व्यक्ति के लिए है और इसे बिना किसी विशेष दीक्षा के पढ़ा जा सकता है।
क्या इसे विशेष संख्या में पढ़ने से अधिक लाभ मिलता है?
हाँ, विशेष संख्या जैसे 11, 21, या 108 बार जप करने से इसका प्रभाव अधिक गहरा और सकारात्मक होता है।