सोमवती अमावस्या का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह अमावस्या तब पड़ती है जब अमावस्या का दिन सोमवार को आता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव, माता पार्वती, और पीपल वृक्ष की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा करने और कथा सुनने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है, मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है, क्योंकि इससे उनके पति की आयु लंबी होती है और गृहस्थ जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
सोमवती अमावस्या व्रत कथा
बहुत समय पहले एक नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। उसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इसके अलावा उसकी एक सुंदर और गुणवान बेटी भी थी। साहूकार का घर समृद्ध था और हर दिन उनके घर एक साधु भिक्षा माँगने आता था। साधु को बहुएँ भिक्षा देतीं, लेकिन जब साहूकार की बेटी भिक्षा देने आती, तो साधु उससे भिक्षा लेने से मना कर देता। वह कहता, “तेरे भाग्य में सुहाग की जगह दुहाग लिखा है।”
बेटी को यह बात बहुत बुरी लगी और उसने रोते हुए अपनी माँ को यह सब बताया। माँ ने अगले दिन साधु से स्वयं इस बात का कारण जानने का निश्चय किया। अगले दिन, माँ छिपकर बैठ गई और साधु को देखती रही। जब बेटी साधु को भिक्षा देने आई, तो साधु ने फिर वही बात दोहराई। माँ बाहर आ गई और साधु से पूछा, “तुम ऐसा क्यों कहते हो? हमने तुम्हें हमेशा सम्मान और भिक्षा दी है, फिर भी तुम मेरी बेटी को ऐसा श्राप क्यों दे रहे हो?”
साधु ने शांत स्वर में कहा, “मैं श्राप नहीं दे रहा, बल्कि जो सत्य है वही कह रहा हूँ। तेरी बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा है। यदि तुम इसे टालना चाहती हो, तो सात समंदर पार रहने वाली धोबिन सोना से मिलो। वह सोमवती अमावस्या का व्रत करती है। अगर वह अपनी अमावस्या के व्रत का पुण्य तुम्हारी बेटी को दे दे, तो यह दुर्भाग्य टल सकता है। अन्यथा, विवाह के समय एक सांप तुम्हारी बेटी के पति को काट लेगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी।”
माँ ने अपनी बेटी को बचाने का निश्चय किया और सात समंदर पार सोना धोबिन की तलाश में निकल पड़ी। लंबे समय तक यात्रा करने के बाद, एक दिन तेज धूप से परेशान होकर माँ एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गई। उसी पेड़ पर गरुड़ पक्षी के बच्चों का घोंसला था।
अचानक एक जहरीला सांप आया और गरुड़ के बच्चों को खाने लगा। माँ ने बहादुरी से उस सांप को मार दिया और बच्चों की जान बचा ली।
कुछ समय बाद गरुड़ पक्षी लौटकर आई और खून देखकर उसने माँ पर हमला कर दिया। माँ ने रोते हुए सारी बात बताई कि उसने उनके बच्चों को सांप से बचाया है। गरुड़ ने सच्चाई जानकर कहा, “तूने मेरे बच्चों की रक्षा की है। बता, तू क्या चाहती है?” माँ ने कहा, “मुझे सात समंदर पार सोना धोबिन के पास पहुँचा दो।”
गरुड़ पक्षी ने अपनी पीठ पर बिठाकर माँ को सोना धोबिन के घर पहुँचा दिया।
सोना धोबिन के घर में सात बहुएँ थीं, जो दिन-रात आपस में झगड़ती रहती थीं। माँ ने चुपचाप सुबह से पहले उठकर घर के सारे काम कर दिए। बहुएँ जब उठतीं, तो घर साफ-सुथरा मिलता। धीरे-धीरे बहुएँ झगड़ना बंद कर चुकी थीं। सोना धोबिन को यह देखकर आश्चर्य हुआ। उसने अपनी बहुओं से पूछा, “यह सब कौन कर रहा है?” बहुएँ झूठ बोलने लगीं कि वे सब मिलकर काम करती हैं।
अगली सुबह, सोना धोबिन खुद छिपकर बैठ गई और देखा कि साहूकार की पत्नी चुपके से घर में आकर सारे काम कर रही है। जब माँ जाने लगी, तब सोना धोबिन ने उसे रोक लिया और पूछा, “तुम कौन हो और यह सब क्यों कर रही हो?” माँ ने कहा, “पहले वचन दो कि तुम मेरी मदद करोगी।” सोना धोबिन ने वचन दिया। तब माँ ने पूरी बात बताई और कहा, “मेरी बेटी के भाग्य में दुहाग लिखा है। तुम सोमवती अमावस्या का व्रत करती हो, कृपया अपनी व्रत का पुण्य मेरी बेटी को दे दो।”
सोना धोबिन वचन से बँधी थी और साहूकार की पत्नी के साथ चल पड़ी। घर पहुँचने के बाद, साहूकार की बेटी का विवाह हुआ। फेरे लेते समय एक जहरीला सांप आया और दूल्हे को डसने लगा। लेकिन सोना धोबिन ने सांप को पकड़कर उसे मार दिया और दूल्हे की जान बचा ली।
सोना धोबिन ने कहा, “जितने सोमवती अमावस्या के व्रत मैंने किए हैं, उनका पुण्य इस लड़की को मिले। अब आगे के व्रतों का पुण्य मेरे पति और बेटों को मिलेगा।”
वापसी के समय रास्ते में सोमवती अमावस्या का दिन आया। सोना धोबिन ने पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा की, व्रत रखा और पूजा की।
जब वह घर लौटी, तो उसने देखा कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसने तुरंत अपने व्रत का पुण्य अपने पति को दे दिया, जिससे उसके पति जीवित हो उठे।
नगर के लोग इस चमत्कार से हैरान रह गए। उन्होंने सोना धोबिन से पूछा, “तुमने ऐसा क्या किया जिससे तुम्हारे पति जीवित हो उठे?” सोना धोबिन ने कहा, “मैंने सोमवती अमावस्या का व्रत रखा, पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमा की और कथा कही।”
तब से पूरे नगर में सोमवती अमावस्या का व्रत करने, कथा कहने और पीपल वृक्ष की परिक्रमा करने की परंपरा शुरू हुई।
शिक्षा: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि श्रद्धा, भक्ति, और समर्पण से असंभव को संभव बनाया जा सकता है। सोमवती अमावस्या का व्रत पति की आयु और गृहस्थ जीवन के सुख के लिए अत्यंत फलदायी है। हर विवाहित स्त्री को इस व्रत का पालन करना चाहिए।