कहते हैं, सच्ची भक्ति में ईश्वर स्वयं भक्त की पुकार सुनते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ हनुमानगंज नाम के छोटे से गाँव में रहने वाले त्रिलोकीनाथ के साथ। त्रिलोकीनाथ का इस दुनिया में कोई नहीं था। उसका हर रिश्ता, हर विश्वास सिर्फ हनुमान जी से जुड़ा हुआ था।
हर सुबह, जब सूरज की पहली किरणें धरती पर पड़तीं, त्रिलोकीनाथ अपनी पूजा की थाली लेकर हनुमान मंदिर पहुंच जाता। मंदिर की सफाई करता, घंटों भगवान से बातें करता, मानो हनुमान जी उसके सबसे अच्छे दोस्त हों।
एक दिन, पूजा करते हुए त्रिलोकीनाथ को ध्यान आया कि हनुमान जी रस्सियों में बंधे हुए हैं और उससे मदद मांग रहे हैं। उसने इसे एक भ्रम समझकर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन रात को वही सपना फिर आया। इस बार हनुमान जी ने साफ कहा, “त्रिलोकीनाथ, मैं मंदिर के पीछे आम के पेड़ में फंसा हूं। मुझे वहां से निकालो और मंदिर में स्थापित करो।”
सुबह होते ही त्रिलोकीनाथ सीधे गांव के मुखिया जी के पास पहुंचा। उसने सपना और हनुमान जी का संदेश सुनाया। लेकिन पंचायत में सब हंस पड़े। किसी ने त्रिलोकीनाथ की बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
रात के सन्नाटे में, त्रिलोकीनाथ ने खुद एक कुल्हाड़ी उठाई और अकेले मंदिर के पीछे आम के पेड़ के पास पहुंचा। “जय बजरंगबली!” कहकर उसने पेड़ पर पहला प्रहार किया।
कुछ देर बाद, पेड़ के तने से हनुमान जी की एक दिव्य प्रतिमा प्रकट हुई। उसकी आभा से पूरा जंगल चमक उठा। सुबह जब गांववालों ने यह देखा, तो हर तरफ “जय हनुमान!” के जयकारे गूंज उठे।
अब त्रिलोकीनाथ को गांव में विशेष सम्मान मिला। हनुमान जी की प्रतिमा मंदिर में स्थापित हुई, और गांव में सुख-शांति का वास हो गया।
शिक्षा: सच्ची भक्ति और अटूट विश्वास के आगे हर बाधा छोटी पड़ जाती है। जब आप ईश्वर पर भरोसा करते हैं, तो चमत्कार अवश्य होते हैं।