संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा | Sankashti Chaturthi Vrat Katha

Sankashti Chaturthi Vrat Katha in Hindi: संकष्टी चतुर्थी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो भगवान गणेश को समर्पित होता है। यह व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। ‘संकष्टी’ का अर्थ है ‘कष्टों का निवारण करने वाला’ और ‘चतुर्थी’ का अर्थ है ‘चतुर्थ तिथि’।

इस दिन भक्त भगवान गणेश की उपासना कर जीवन के सभी संकटों और बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को सच्चे मन और श्रद्धा के साथ करता है, उसके जीवन से सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत का एक विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह भगवान गणेश के आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक सरल और प्रभावी मार्ग माना गया है।

अब आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा, जो इस व्रत के महत्व को और अधिक स्पष्ट करती है।

प्राचीन समय की बात है। ऋषि भारद्वाज और देवी पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल था। मंगल बाल्यकाल से ही अत्यंत तेजस्वी और भक्तिपरायण बालक था।

जब वह केवल सात वर्ष का था, तब उसने भगवान गणेश की कठोर तपस्या करने का संकल्प लिया। उसने वर्षों तक कठिन उपवास किए और घोर तपस्या में लीन रहा। उसकी अटूट श्रद्धा और भक्ति से भगवान गणेश प्रसन्न हो गए।

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन भगवान गणेश मंगल के सामने प्रकट हुए। उनका तेजस्वी स्वरूप देख मंगल का हृदय आनंद से भर गया। भगवान गणेश ने प्रेमपूर्वक मंगल से कहा, “वत्स, मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। जो वरदान चाहो, मुझसे मांग लो।” मंगल ने विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा, “हे गणेश जी, मेरी इच्छा है कि मैं सदैव आपकी शरण में रहूं और स्वर्ग में देवताओं के समान सम्मान प्राप्त करूं।

” भगवान गणेश ने मंगल की भक्ति और विनम्रता को देखते हुए उसे आशीर्वाद दिया, “हे मंगल, तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। तुम्हें स्वर्ग में देवताओं के समान सम्मान मिलेगा और तुम मंगल और अंगारक नाम से प्रसिद्ध होगे। जो भी भक्त संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखेगा और विधि-विधान से मेरा पूजन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।”

भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त कर मंगल का हृदय कृतज्ञता से भर गया। इसके बाद भगवान गणेश अंतर्ध्यान हो गए। तभी से संकष्टी चतुर्थी का व्रत अत्यंत पुण्यदायी और मंगलकारी माना जाता है। इस व्रत को करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति को सुख-शांति, धन-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

शिक्षा: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची श्रद्धा, तपस्या और भक्ति से भगवान अवश्य प्रसन्न होते हैं। यदि हम सच्चे मन से भगवान की उपासना करें, तो हमारी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।

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